देश का विकास तो हो रहा है, लेकिन ये कैसा विकास? जी हां, क्या आपने सोचा कि ये कैसा देश का हाल है? एक तरफ देश का युवा जो देश का भविष्य है वो सड़को पर है, तो वहीं दूसरी तरफ देश का अन्नदाता जो दूसरों का पेट भरता है, खुद भूखा रहकर देश की सड़को पर उतरा है…तो क्या यही अच्छे दिन की शुरूआत? न जाने कहां गये वो लोग जो कहते थे कि अबकी बार हमारी सरकार आएगी तो देश के युवाओं को रोजगार तो किसानों की आय दोगुनी, उन्हें कर्ज से मुक्त कराएंगे! लेकिन सड़को पर उतरे ये किसान और युवा चीख चीख कर इस तरफ गवाही दे रहे हैं कि सरकार कोई भी क्यों न हो, उन्हें वोट बैंक से मतलब होता है।
दरअसल, देश के मिजाज को समझने के लिए हमें ज्यादा दिनों पीछे जाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि इसी साल दो बड़े तबके जिसके अासरे राजनीतिक पार्टियां अपनी रोटियां सेंकेती है, वो सड़को पर हैं। सरकार की तरफ से उन्हें सिर्फ दिलासा ही दिलाया जाता है। लेकिन इस दिलासे से पेट नहीं भरता है साहेब! पेट भरने के लिए आमदनी की जरूरत होती है, जोकि आप दिलाने से रहे!
युवा बेरोजगार, किसान बदहाल: महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ अन्नदाता का प्रदर्शन
महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ हजारों किसान प्रदर्शन कर रहे हैं, क्योंकि किसानों का कहना है कि सरकार ने वादा किया था कर्जमाफ करने का लेकिन अभी तक कर्ज माफ नहीं हुआ। आंदोलन में शामिल किसानों की यही मांग है कि सरकार ने जो वादा किया था, उसे निभाए, क्योंकि वो कर्ज के तले दब गये हैं, उनकी हालत नाजुक है, उनके पास खाने के लिए पैसा नहीं है, ऐसे में सरकार भी उन्हें धोखा दे रही है। महाराष्ट्र में किसानों का भारी सैलाब देखने को मिला, इसके अलावा किसानों की मांग यह भी है कि वो बुलेट ट्रेन के लिए उनकी जमीनों को खाली न कराएं।
बता दें कि ये हालत सिर्फ महाराष्ट्र के किसानों की नहीं है, बल्कि देशभऱ में किसानों के हालात कुछ इसी तरह हैं। ऐसे में जनता के प्रतिनिधियों पर सवाल ये खड़ा होता है कि आखिर वो जनता के साथ छल क्यों करते हैं? बता दें कि पिछले साल जून में महाराष्ट्र की सरकार ने कर्जमाफी का बड़ा ऐलान किया था, जिसके बाद से अब तक सूबे में हजार किसानों ने आत्महत्या कर ली, लेकिन सरकार सोती रही है, ऐसे में अब किसान आंदोलन करके सीधे सीधे सरकार के मुंह पर तमाचा मार रहे हैं।
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युवा बेरोजगार, किसान बदहाल: य़ुवाओं के हाथ हुनर होने के बावजूद खाली
बीते दिनों से एसएससी पेपर लीक को लेकर युवा सड़क पर आ गये, ये वो युवा हैं, जो रोजगार के लिए दिन रात मेहनत करके पढ़ते हैं, साथ ही लाखों रूपये फीस देते हैं, लेकिन उनके हाथ में क्या आता है? सिर्फ प्रदर्शन। इतना ही नहीं, हाल ही में केंद्र सरकार की तरफ से जारी एक रिपोर्ट में भी यह बात सामने आ चुकी है कि पढ़े लिखे होने के बावजूद युवाओं के हाथ में रोजगार नहीं है।
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देश के युवाओं रोजगार दिलाने वाला का वादा करने वाली पार्टियां सत्ता में आते ही युवाओं को भूल जाती है, फिर पांच साल बाद युवाओं को आकर्षित करने के लिए फिर से वादा दोहराया जाता है। ऐसे में सवाल तो यही खड़ा होता है कि युवा बेरोजगार, किसान बदहाल तो कैसा है ये देश का हाल? क्या यही है अच्छे दिन की शुरूआत?